Basant panchami 2021
बसंत पंचमी का त्योहार खासकर उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन कई जगहों पर पतंगबाज़ी भी की जाती है। इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। यूं तो भारत में छह ऋतुएं होती हैं लेकिन बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस दौरान मौसम सुहाना हो जाता है और पेड़-पौधों में नए फल-फूल आने लगते हैं।
खासकर किसानों के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व होता है। बसंत पंचमी पर सरसों के खेत लहलहा उठते हैं। चना, जौ, ज्वार और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं। बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन मां सरस्वती को पूजा जाता है। इस दिन कई लोग प्रेम के देवता काम देव की पूजा भी करते हैं।
बसंत पंचमी कब है
मां सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित बसंत पंचमी का पर्व इस साल 16 फरवरी दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, बसंत पंचमी का त्योहार माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है जो कि इस बार 16 फरवरी 2021 को पड़ेगी।
बसंत पंचमी का महत्व और इतिहास
बसंतपंचमी
बसंत पंचमी हिन्दुओ का प्रमुख त्यौहार है और बसंत पचमी को श्री पंचमी और ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। यह त्यौहार माघ के महीने में शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। पुरे वर्ष को 6 ऋतूओ में बाँटा जाता है, जिसमे बसंत ऋतू , ग्रीष्म ऋतू ,वर्षा ऋतू , शरद ऋतू , हेमंत ऋतू और शिशिर ऋतू शामिल है। इस सभी ऋतूओ में से बसंत को सभी ऋतूओ का राजा माना जाता है, इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी कहा जाता है तथा इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है।
इस ऋतु में खेतों में फसले लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते है एवम् हर जगह खुशहाली नजर आती है तथा धरती पर सोना उगता है अर्थात धरती पर फसल लहलहाती है।
मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए बसंत पचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है । माँ सरस्वती को विद्या एवम् बुद्धि की देवी माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती से विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान का वरदान मांगा जाता है।
इस दिन लोगों को पीले रंग के कपडे पहन कर पीले फूलो से देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए एवम् लोग पतंग उड़ाते और खाद्य सामग्री में मीठे पीले रंग के चावाल का सेवन करते है। पीले रंग को बसंत का प्रतीक माना जाता है।
बसंत पंचमी का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे एक पौराणिक कथा है। सर्वप्रथम श्री कृष्ण और ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती की पूजा की थी। देवी सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो वो उनके रूप को देखकर मोहित हो गयी और पति के रूप में पाने के लिए इच्छा करने लगी।
इस बात का भगवान श्री कृष्ण को पता लगने पर उन्होंने देवी सरस्वती से कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित है परन्तु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण देवी सरस्वती को वरदान देते है कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने वाले को माघ महीने की शुल्क पंचमी को तुम्हारा पूजन करेंगे। यह वरदान देने के बाद सर्वप्रथम ही भगवान श्री कृष्ण ने देवी की पूजा की।
शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है, कथा कुछ इस प्रकार है।
बसंत पंचमी के ऐतिहासिक महत्व को लेकर यह मान्यता है कि सृष्टि रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवो और मनुष्यों की रचना की थी तथा ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना करके उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता है एवम् वातावरण बिलकुल शांत लगता है जैसे किसी की वाणी ना हो।
यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी मायूस, उदास और संतुष्ट नहीं थे। तब ब्रह्मा जी भगवान् विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल पृथ्वी पर छिडकते है। कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगता है और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी(चार भुजाओं वाली) सुंदर स्त्री प्रकट होती है।
उस देवी के एक हाथ में वीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा होती है बाकी अन्य हाथ में पुस्तक और माला थी। ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध करते है। देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को जाती है। उस पल के बाद से देवी को “सरस्वती” कहा गया। उस देवी ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
अर्थात दुसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम “सरस्वती पूजा” भी है। देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।
बसंत पंचमी कैसे मनाई जाती है?
माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से विद्यार्थियों को बुद्धि और विद्या का वरदान प्राप्त होता है। बसंत पंचमी के त्योहार पर लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीले रंग के फूलों से मां सरस्वती की पूजा करते हैं। वहीं, कई स्कूलों में भी सरस्वती पूजा की जाती है। शास्त्रों के अुनसार बसंत पचंमी से सर्दी कम हो जाती है और गर्मी के आगमन की आहट मिलने लगती है। बसंत पंचमी तिथि को शादी-विवाह, गृह प्रवेश आदि कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।
बसंत पंचमी के दिन कैसे की जाती है मां सरस्वती की पूजा?
- इस दिन मां सरस्वती की पूजा कर उन्हें फूल अर्पित किए जाते हैं।
- इस दिन वाद्य यंत्रों और किताबों की पूजा की जाती है।
- छोटे बच्चों को पहली बार अक्षर ज्ञान कराया जाता है। उन्हें किताबें भी भेंट की जाती हैं।
- इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
- इस दिन पीले चावल या पीले रंग का भोजन किया जाता है। बंगाल में इस दिन पीले रंग की खिचड़ी खाई जाती है।
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